भाजपा टिकट की दावेदारी से पहले पार्टी पद से इस्तीफा और पोस्टरवार से दूरी की शर्त का कड़ाई से पालन होना तय | हालांकि यह मापदंड भाजपा में अभी फिलहाल उत्तर प्रदेश तक सीमित हैं लेकिन पार्टी आलाकमान इसे उत्तराखंड में लागू करने को लेकर विचार कर सकता है | यानि पार्टी पदाधिकारी बने रहना और बेवजह अपने विधानसभा क्षेत्र में पोस्टरवार में शामिल होना उसकी विधायक की दावेदारी को समाप्त कर सकता है |
फिलहाल सबसे पहले समझते हैं क्या है यूपी में उम्मीदवारों को लेकर भाजपा की रणनीति और नियम ? बेशक चुनाव की तारीखों के ऐलान में अभी वक्त हो लेकिन भाजपा पूरी तरह चुनावी मूड में आ गई हैं | प्रत्याशी तय करने को लेकर पार्टी के नियमों और तौर तरीकों ने सभी दावेदारों की नींद उड़ाई हुई है | क्यूंकि उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी ने स्पष्ट कर दिया है कि राज्य स्तर या जिला स्तर पर कोई भी पदाधिकारी चुनाव नहीं लड़ेगा | ऐसे में अगर कोई चुनाव लड़ने का इच्छुक है तो उसे पहले पार्टी के पद से इस्तीफा देना होगा | इस नियम का यदि कड़ाई से पालन हुआ तो चुनावी मौके पर चौका लगाने वाले अधिकांश विधायकी के दावेदार पदाधिकारियों का कदम पीछे खींचना तय है | अगर ऐसा हुआ तो टिकटों को लेकर पार्टी में महामारी का काफी हद तक नियंत्रण में रहना तय है |वहीं प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह की पार्टी नेताओं को अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में होडिर्ंग-बैनर लगाकर उम्मीदवारी का दावा न करने की चेतावनी पर भी गंभीरता से विचार होना तय है | किसी भी दावेदार की ऐसी कोशिशों को नकारात्मक सूची में डाला जाएगा |
सूत्रों के मुताबिक भाजपा के संगठन महामंत्री सुनील बंसल ने पार्टी की एक बैठक में यह सारे नियम स्पष्ट किए हैं | बैठक में स्पष्ट किया गया कि पंचायत चुनावों में विधानसभवार पार्टी के प्रदर्शन और सर्वे के आधार पर किस तरह मौजूदा विधायकों के भाग्य का फैसला भी होगा |
एक तो पहले से ही बड़ी संख्या में सिटिंग विधायकों के टिकट काटने की खबरों से अधिकांश विधायकों की दावेदारी पर तलवार लटकी हुई थी, इन नए नियमों ने बड़ी संख्या में दावेदारों के चुनावी कुम्भ में अमृत चखने से वंचित होने पर मजबूर कर दिया है | हालांकि पार्टी में एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो मानता है कि राजनीति में नियम तोड़े जाने के लिए बनाए जाते हैं | दरअसल भाजपा ने पूर्व में घोषणा की थी कि पार्टी नेताओं के रिश्तेदारों को पंचायत चुनाव लड़ने का मौका नहीं दिया जाएगा | लेकिन बाद में पार्टी ने जीत की उम्मीदों को प्राथमिकता दी और स्वेच्छा से अपने नेताओं के बेटों, बेटियों और पत्नियों को टिकट दिया |
फिलहाल इन नियमों का भाजपा यूपी में कितनी कड़ाई से पालन करवाती है अभी कहना मुश्किल है | लेकिन उत्तराखंड में भी इस नियम को लागू करवाने की चर्चा से सभी दावेदारों के कान खड़े हो गए हैं |