जनसंख्या नियंत्रण के उद्देश्यों के साथ यूपी में लायी जाने वाली टू चाइल्ड पॉलिसी की सफलता पर अभी से आलोचना वीरों ने प्रश्न चिन्ह लगाने शुरू कर दिये हैं | सबका एक ही तर्क है कि इस तरह की नीति पहले से जिन राज्यों में लागू है वहाँ अब भी पूर्ववृति गति से ही जनसंख्या बढ़ रही है | लिहाजा हम यहाँ बताते है कि यूपी के इस बहुप्रत्यासित कानून का अपने किन नियमों के चलते अन्य राज्यों के मुक़ाबले सफल होने की अधिक संभावना है |
कौन कौन से राज्यों में असफलता के साथ लागू है ऐसा कानून
उत्तर प्रदेश में दो महीनों के भीतर टू चाइल्ड पॉलिसी तैयार होने वाली है । हालांकि जनसंख्या नियंत्रण को लेकर लाये जाने वाले इस तरह के कानून अनेक राज्यों में पहले से लागू हैं | लेकिन वहाँ भी जनसंख्या की बढ़ती रफ्तार उनके असफल होने की कहानी बयां करने के लिए काफी है | मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक जैसे बड़े राज्यों में ये कानून साल 2000 से 2010 के बीच वजूद में आए। वावजूद इसके इन सालों में इन सभी राज्यों में औसतन 20% की रफ्तार से जनसंख्या बढ़ी जो यूपी की जनसंख्या वृद्धि के बराबर है । लिहाजा सरसरी तौर पर कहें तो ऐसी नीतियों का राज्य की जनसंख्या वृद्धि पर कोई विशेष प्रभाव नजर नहीं आता है । हालांकि इनकी असफलता इन राज्यों में कानून के नियमों और अनुपालन के तौर तरीकों पर अधिक निर्भर रही है |
मध्य प्रदेश– यहां 2001 से दो बच्चों की नीति लागू है। राज्य के सिविल सर्विस क्लॉज 4, नियम 22 के अनुसार, 26 जनवरी 2001 के बाद तीसरा बच्चा पैदा होने पर उस नागरिक को सरकारी नौकरी से वंचित रखा जाएगा।
राजस्थान – यहां 2002 से ही लागू इस कानून के तहत दो से ज्यादा बच्चों वाले नागरिक सरकारी नौकरी के लिए पात्र नहीं माने जाते थे। तीसरा बच्चा होने पर समय से पहले रिटायरमेंट के लिए कहा जाता है ।
महाराष्ट्र – यहाँ भी सिविल सर्विसेज रूल्स 2005 के तहत दो से ज्यादा बच्चा पैदा करने वाले को राज्य सरकार की नौकरी नहीं मिलती है । साथ ही वहाँ के ग्राम पंचायत और म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन में चुनाव लड़ने की छूट नहीं है।
गुजरात सरकार ने भी लोकल अथॉरिटी एक्ट में बदलाव कर दो से ज्यादा बच्चे वालों को स्थानीय निकाय चुनाव लड़ने से वंचित रखा जाता है।
इसी तरह उत्तराखंड में भी दो बच्चों से अधिक वाले लोकल बॉडी चुनाव नहीं लड़ पाएंगे | हालांकि बाद में हाईकोर्ट ने ग्राम प्रधान के चुनाव लड़ने में छूट दे दी। बिहार, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश में भी ऐसे नियम थे, लेकिन 2020 में पंचायत चुनाव के वक्त दो बच्चों वाले कानून में ढील दी गई।
यूपी का कानून किस तरह होगा सबसे अलग
UP स्टेट लॉ कमीशन के चेयरमैन ए एन मित्तल के अनुशार कानून बनाने के लिए UP लॉ कमीशन राजस्थान, मध्य प्रदेश, असम के साथ चीन और कनाडा के भी इसी तरह के कानूनों को स्टडी कर रहा है । और जल्दी ही इस कानून को असरकारक बनाने के लिए सभी नियम तैयार कर लिए जाएँगे | सूत्रों के अनुशार यूपी के इस कानून के अस्तित्व में आते ही तीसरा बच्चा पैदा करने वालों को सरकारी सुविधाओं से वंचित किया जाएगा | राशन वितरण और अन्य योजनाओं में दी जा रही सब्सिडी समाप्त की जाएगी या काफी कटौती की जाएगी | इसी तरह सरकारी नौकरियों में जाने और वहाँ प्रमोशन पर रोक लगा दी जाएगी |
क्यूँ होगा यूपी का कानून अधिक कारगर अन्य राज्यों से
अन्य राज्यों में दो से अधिक बच्चे होने की स्थिति में सरकारी नौकरी या चुनाव लड़ने पर पाबंदी की जाती है, जो जनसंख्या नियंत्रण के उद्देश्य के लिए काफी नहीं है | क्यूंकि बच्चों पैदा करने की प्रवृति अधिकांशतया कमजोर, अशिक्षित और गरीब तबके में पायी जाती है | जिनमे अधिकतर की आर्थिक, सामाजिक और मानसिक स्थिति ऐसी नहीं होती कि वह सरकारी नौकरी या चुनाव लड़ने की सोचे भी | ऐसे में केवल इन शर्तों से उन्हे परिवार नियोजन के लिए प्रेरित करना मुश्किल है | वहीं राशन वितरण और अन्य तमाम सरकारी सुविधाओं और योजनाओं से वंचित होने का जोखिम उठाना उनके लिए संभव नहीं है | लिहाजा ऐसे ही तौर तरीकों का सफल होना तय है | यहाँ अधिक तर्क विस्तार में न जाकर रामायण की पंक्तियों के साथ योगी सरकार की जनसंख्या नियंत्रण नीति को समझा जा सकता है ….भय बिन होई न प्रीति |