एक ही कारण बहुत था पार्टी छोड़ने के लिए, यहाँ तो कई हैं रावत जी …….
पूर्व सीएम हरीश रावत को लेकर जो चर्चा इन दिनों मीडिया की सुर्खियां बनी है वो तो होना ही था, जिसका जिक्र हम पहले के पोस्टो में अनुमान लगा चुके हैं | हाँ ये बात और है कि हरीश रावत और कॉंग्रेस आलाकमान के बीच जारी रस्साकस्सी की यह सब प्रक्रिया और भी तेज हो सकती थी यदि रावत अपनी उम्र से लंबी सब्र की इंतेहा तक खुद को नहीं ले जाते | फिलहाल हम यहाँ जिक्र करते उन कारणों का जिन्होने रावत को बेवफा होने के लिए मजबूर किया है |
कारण नंबर 1- एक मर्तबा फिर आलाकमान का हरीश रावत को रोकने के लिए गुटबाजी को शह देने का फार्मूला अपनाना
राज्य निर्माण के समय से ही पार्टी के अंदर की गुटबाजी ने उन्हे नुकसान पहुंचाया है | पृथक राज्य के पहले आम चुनावों में कॉंग्रेस की जीत में उनकी मेहनत को उस समय भी किसी ने नहीं नकारा सिवाय सिवाय उनकी पार्टी के अन्य दिग्गजों के | उनके सभी विरोधियों ने एक होकर सन्यास की कगार तक पहुंचे एन डी तिवारी को दिल्ली की रजामंदी से सीएम बनाया | 2012 में फिर पार्टी को जीत मिली तो अबकी बार फिर रावत विरोधियों को मिला दिल्ली का साथ और विजय बहुगुणा सीएम बने | केदारनाथ आपदा रेसक्यू में नाकामी के बाद हरीश रावत को मौका मिला | वर्तमान चुनाव के समय बहुगुणा व अन्य विरोधियों के पार्टी से बाहर होने से उनका कोई बड़ा विरोध नहीं था, लेकिन केंद्रीय नेत्रत्व ने स्वयं को मजबूत बनाने के लिए सूबे के बचे कुचे दिग्गजों को रावत के खिलाफ खड़ा करके उनके सीएम पद की संभावनाओं को समाप्त करने दांव खेला है |
कारण नंबर 2- प्रदेश में पार्टी का सबसे लोकप्रिय चेहरा होने के बाद भी दिल्ली वालों का आँख मूँद कर सीएम उम्मीदवारी के लिए नज़रअंदाज़ करना |
एक और विभिन्न सर्वे में रावत कॉंग्रेस के एकछत्र नेता दिखाई दे रहे हैं लेकिन आलाकमान इस सच्चाई को नकार कर, समूहिक नेत्रत्व की बात कहकर अभी से हरदा विरोधी मंशा जता रहा है |
कारण नंबर 3- उनके समर्थकों को टिकट की दौड़ से बाहर रखकर चुनाव से पहले ही उनको कमजोर करने की कोशिशें जारी होना |
कॉंग्रेस नेत्रत्व चुनाव अधिसूचना लागू होते ही उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी कर भाजपा पर लीड लेते हुए दिखना चाहती है | लेकिन ऐसा करने में अधिकांशत उन सीटों पर घोषणा करने की तैयारी है जिन पर उम्मीदवारी को अधिक विवाद नहीं है | लेकिन इसमें भी हरीश रावत समर्थकों वाली विवादरहित सीटों को फिलहाल छोड़ दिया गया है जिससे संभावना बड़ी है कि उनपर भी हरदा के खिलाफ खेल हो सकता है |
कारण नंबर 04- उनके विरोधियों की भाजपा से घर वापिसी को ग्रीन सिग्नल देना |
रावत की नाराजगी का एक बड़ा कारण है 2016 में पार्टी छोड़ कर गए उनके विरोधी दिग्गजों की पार्टी में वापिसी को आलाकमान की हरी झंडी मिलना | हरीश रावत ही नहीं राजनीति की मामूली सी जानकारी रखने वाले को भी पता है कि भाजपा में गए हरक सिंह रावत, विजय बहुगुणा, सतपाल महाराज और अन्य वरिष्ठ विधायक और नेता पार्टी में आकर पहले से मौजूद उनके विरोधी धडे को मजबूत करने का काम करेंगे | उस पर दिल्ली दरबार की उनके विरोधियों को दी जा रही शह, घर वापिसी करने वाले नेताओं को तेजी से उनके खिलाफ मजबूत होने में मददगार साबित होगी |
अब आपके मन में भी जरूर यह सवाल होगा कि जब हरदा अपने मन की पीड़ा सीधे सीधे शीर्ष नेत्रत्व को नहीं बता सकते है तो आम जनता की आवाज कैसे बनेगे | आपकी चिंता जायज है लेकिन इसका जबाब या तो स्वयं हरीश रावत दे सकते हैं या हम कोशिश कर सकते हैं अगले राजनीतिनामा में |